मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा । ।चूड़ामनि उतारि तब दयऊ ।हरष समेत पवनसुत लयऊ । ।
"मोरें ह्रद्य परम संदेहा ।
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा । ।
कनक भूधराकार सरीरा ।
समर भयंकर अतिबल बीरा । ।
सीता मन भरोस तब भयऊ ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ । । "