Saturday, 30 April 2016

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।
जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा । ।
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ ।
हरष समेत पवनसुत लयऊ । ।
"मोरें ह्रद्य परम संदेहा । 
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा । । 
कनक भूधराकार सरीरा । 
समर भयंकर अतिबल बीरा । । 
सीता मन भरोस तब भयऊ ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ । । "