Monday, 29 June 2015

नज़र

           गोद मैं बच्चा लिए व हाथ मैं झोला लटकाए एक ग्रामीण महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एक दम से वह निराश हो गयी, फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर बैठने  कीजगह मिल जाए, वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी , उस पर बस एक युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से बैठ गई ।

अरे रे.....  कहाँ बैठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी।
 
आंखों मैं उभरी चमक  गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच गैलरी मैं ही बैठ गयी, इसके बाद उस खालीसीट को देख कर आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,तभी एक युवती बस मैं चढ़ी , अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, कोई आएगा, नीचे गया होगा, टिकेट या फिर कूछ लेने , और वह भी खड़ी हो गयी उस नीचे बैठी महिला के पास।

बैठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा ।

इस आवाज पर युवती ने पीछे मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था,उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा ?

जी नही.

युवक उसी मुस्कान के साथ बोला। इस पर युवती मुडी और नीचे बेठी उस बच्चे वाली महिला को वहां बैठा दिया। उस अब युवक का चेहरा देखने लायक था ।

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