Friday, 28 August 2015

happy raksha bandhan


भोले शंकर जी की आरती


जय शिव ओंकारा
 जय शिव ओंकारा, हर  शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज ते  सोहे ।
तीनो  रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
कंचन मृगमद लोचन भाले शशिधारी  ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक ब्र्ह्मादि  भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
जगकर्ता जगहर्ता जगपालन करता 
ॐ जय शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा.



Monday, 24 August 2015

खास अवसर


मेरे एक मित्र  ने अपनी पत्नी की अलमारी खोली और एक पैकेट निकाला।  बोला कि "ये कोई साधारण पैकेट नहीं है "। उसने पैकेट खोला तो उसमे से एक बेहद खूबसूरत सिल्क की साड़ी और उसके साथ एक ज्वैलरी सैट  निकला जिसे मित्र एकटक देखने लगा।
            उसने कहा "ये हमने ८-९ साल पहले लिया था। उसने ये साड़ी कभी पहनी नहीं ,"क्योकि वह इसे किसी खास अवसर पर पहनना चाहती थी " । लेकिन वो खास अवसर आया ही नहीं ,और आज अचानक उसकी मृत्यु हो गई।
           उसने उस पैकेट को अपनी पत्नी की अर्थी के पास रख दिया। और रोते  हुए बोला "किसी भी खास मौके के लिए कभी कुछ खास को बचाकर मत रखना ,क्योकि जिंदगी का हर दिन खास होता है भाई और कल का कुछ भरोसा नहीं है "
           इसलिए मित्रो जिंदगी खुल कर जिओ। जो भी है वो आज है कल का कोई भरोसा नहीं है    

Thursday, 20 August 2015

हर-हर महादेव


**सूर्य को अर्घ देने (जल चढ़ाने) का मंत्र**

                                                                               
                                               "ॐ ऐही सूर्य नमस्तुभ्यं, तेजो राशि जगत्पते।
                                                   अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकरः|"

Tuesday, 18 August 2015

भोले भण्डारी की बारात



हो..शिवजी बिहाने चले
पालकी सजाय के
भभूति लगाय के, हाँ ..
ओ शिवजी बिहाने चले पालकी सजाय के
भभूति लगाय के, पालकी सजाय के, हाँ ...
हो.. जब शिव बाबा करे तैय्यारी
कईके सकल समान हो..
दईने अंग त्रिशूल विराजे
नाचे भूत शैतान हो..
ब्रह्मा चले विष्णु चले
लईके वेद पुरान हो..
शंख, चक्र और गदा धनुष लै
चले श्री भगवान हो...
और बन-ठन के चलें बम भोला
लिये भांग-धतूर का गोला
बोले ये हरदम
चले लाड़का पराय के..
हो भभूति लगाय के
पालकी सजाय के... हाँ ....
हो शिवजी बिहाने चले....

ओ माता मतदिन पर चंचललि
 तिलक जलि लिल्हार हो
 काला नाग गर्दन के नीचे
वोहू दियन फ़ुफ़कार हो..
लोटा फ़ेंक के भाग चलैलि
ताविज निकल लिलार हो..
इनके संगे बिबाह ना करबो
गौरी रही कुंवारी हो
कहें पारवती समझाईं
बतियाँ मानो हमरो माईं
जै भराइलै हाँ हम करमवा लिखाय के
भभूति लगाय के
पालकी सजाय के... हाँ...
हो शिवजी बिहाने चले....

ओ.. जब शिव बाबा मंडवा गईले
होला मंगलाचार हो
बाबा पंडित वेद विचारे
होला गस्साचार हो
बजरबाटी की लगी झालरी
नागिन की अधिकार हो
विज मंडवा में नावन अईली
करे झंगन वडियार हो..
एगो नागिन गिले विदाई
हो भभूति लगाय के
पालकी सजाय के.. हाँ..
हो शिवजी बिहाने चले...

ओ कोमल रूप धरे शिवशंकर
 खुशी भये नर-नारी हो
राजहि नाचन गान करईले
इज्जत रहें हमार हो
रहें वर साथी शिवशंकर से
केहू के ना पावल पार हो
इनके जटा से गंगा बहिली
महिमा अगम अपार हो..
इनको तीनो लोक दिखाये
कहे दुःखहरन
 यही छड़ो बनवाए के
 भभूति लगाय के
 पालकी सजाय के हाँ..


                              " हर-हर महादेव "



ॐ नमो भगवते

अर्द्धनारीश्वर 



Monday, 17 August 2015

 

"छोटी -छोटी बातों में आनंद खोजना चाहिए 

  क्योकिं बड़ी-बड़ी बातें तो जीवन में चंद ही होती हैं " 

Sunday, 16 August 2015

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्




ॐ  नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय 
भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय 
तस्मै न काराय नम: शिवाय ॥1॥

मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय
 नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
                                                              मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
 तस्मै म काराय नम: शिवाय ॥2॥

शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द 
सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय।
                                                               श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
 तस्मै शि काराय नम: शिवाय ॥3॥

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य 
मुनीन्द्रदे वार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय 
तस्मै व काराय नम: शिवाय ॥4॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय 
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
 तस्मै य काराय नम: शिवाय ॥5॥


"पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकम अवाप्नोति शिवेन सह मोदते "

Thursday, 13 August 2015

गिला


जीवन का बड़ा भाग इसी घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे पति संसार की नजर मे बड़े सज्जन , बड़े शिष्ट, बड़े उदार ,बड़े सौम्य होंगे। लेकिन जिस पर गुजरती है वो ही जनता है  

 संसार को उन लोगो की प्रशंसा करने में आनंद आता है ,जो अपने घर को भाड़ में झोंक रहे हो ,गैरो के पीछे अपना सर्वनाश कर डालते हो।  जो प्राणी घरवालो के लिए मरता है ,उसकी प्रशंसा संसार वाले नहीं करते। वह तो उनकी दृष्टि में स्वार्थी है, कृपण है ,संकीर्ण हृदय है  

Monday, 10 August 2015

क्या आप ठीक है


मैं अपने रास्ते जा रहा था। मुझे कुछ सामान लेना था। तभी मेरी नजर एक आदमी पर गई। जिसकी उम्र करीब २९-३० साल होगी। वह बिलकुल पुल के किनारे खड़ा था। मैंने कहा 'अजीब आदमी है '. मैं रुक गया और उससे पुछा कि क्या वह ठीक है ?उसकी आँखों से लग रहा था कि वह ठीक नहीं है
           उसने  कुछ नहीं कहा। मैं उसकी आँखों से निकल रहे आंसुओ को देख रहा था। मैं कुछ नहीं बोला। उसे खुद को सँभालने दिया।  मैं पास की सीढ़ियों पर बैठ गया।  वह भी मेरे पास बैठ गया। हम करीब ४५ मिनिट तक बात करते रहे। वह बता रहा था की उसके साथ क्या हुआ ,किस बात का दुख है और क्यों वह इतना अकेला हो गया है। मैं उसे वहा  अकेला नहीं छोड़ सकता था, लेकिन मुझे जाना भी जरुरी था
            मैं एम्बुलेंस को फ़ोन करने लगा और कहा की वे उसकी सहायता करेंगे। पर वह ऐसा करने से मन करने लगा ,प्लीज एम्बुलेंस मत बुलाएं। मैं ठीक हूँ.मैं बस थोड़ी देर की चहलकदमी की बाद ठीक हो जाऊंगा।  पर मुझे ऐसी हालत में उसे वहा अकेला छोड़ना सही नहीं लगा। मैंने एम्बुलेंस को फ़ोन किया वह उसे हॉस्पिटल ले गई मैंने उसका नंबर ले लिया ,ताकि जान सकु कि वह कैसा है।
             ३-४ महीने बाद उसने संदेश भेजा की उसकी पत्नी माँ बनने वाली है ,और उसको जो बच्चा  होगा वे उसका नाम मेरे नाम पर रखेंगे।  मैं हैरान था कि वे अपने बच्चे  का नाम मुझ पर रखने जा रहे थे
            उसने बताया कि जब मैं उसके पास पंहुचा था तो वह बस कूद कर आत्महत्या करने वाला था। मेरे कुछ  शब्दों ने उसकी जिंदगी को बचा लिया था। वह बोला ,'मेरे दिमाग़ में अभी भी ,"
क्या आप ठीक है " के शब्द गूंजते रहते है। '
           मैं वाकई समझ नहीं पा रहा था कि ये शब्द कैसे जिंदगी बचा सकते है ? पर उसने कहा ,एक बार सोच कर देखे की अगर आपने उस वक्त नहीं पुछा होता कि 'क्या आप ठीक है ' तो क्या मैं आज ................... 

Sunday, 9 August 2015

शिवताण्डवस्तोत्रम्


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥


जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥


जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥


सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥


ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥


नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥


प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥


अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥


जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


॥ इति शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

राधे -राधे



तेनालीराम की सूझबूझ


एक बार राज दरबार में नीलकेतु नाम का यात्री राजा कॄष्णदेव राय से मिलने आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे दी।

यात्री एकदम दुबला-पतला था। वह राजा के सामने आया और बोला- महाराज, मैं नीलदेश का नीलकेतु हूं और इस समय मैं विश्व भ्रमण की यात्रा पर निकला हूं। सभी जगहों का भ्रमण करने के पश्चात आपके दरबार में पहुंचा हूं।

राजा ने उसका स्वागत करते हुए उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा से मिले सम्‍मान से खुश होकर वह बोला- महाराज! उस जगह को जानता हूं, जहां पर खूब सुंदर-सुंदर परियां रहती हैं। मैं अपनी जादुई शक्ति से उन्हें यहां बुला सकता हूं। नीलकेतु की बात सुन राजा खुश होकर बोले - इसके लिए मुझे क्‍या करना चाहिए?

उसने राजा कृष्‍णदेव को रा‍त्रि में तालाब के पास आने के लिए कहा और बोला कि उस जगह मैं परियों को नृत्‍य के लिए बुला भी सकता हूं। नीलकेतु की बात मान कर राजा रात्रि में घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर निकल गए।

तालाब के किनारे पहुंचने पर पुराने किले के पास नीलकेतु ने राजा कृष्‍णदेव का स्‍वागत किया और बोला- महाराज! मैंने सारी व्‍यवस्‍था कर दी है। वह सब परियां किले के अंदर हैं।

राजा अपने घोड़े से उतर नीलकेतु के साथ अंदर जाने लगे। उसी समय राजा को शोर सुनाई दिया। देखा तो राजा की सेना ने नीलकेतु को पकड़ कर बांध दिया था। 

यह सब देख राजा ने पूछा- यह क्‍या हो रहा है?  

तभी किले के अंदर से तेनालीराम बाहर निकलते हुए बोले - महाराज! मैं आपको बताता हूं? 

तेनालीराम ने राजा को बताया - यह नीलकेतु एक रक्षा मंत्री है और महाराज...., किले के अंदर कुछ भी नहीं है। यह नीलकेतु तो आपको जान से मारने की तैयारी कर रहा है। 

राजा ने तेनालीराम को अपनी रक्षा के लिए धन्यवाद दिया और कहा- तेनालीराम यह बताओं, तुम्हें यह सब पता कैसे चला?

तेनालीराम ने राजा को सच्‍चाई बताते हुए कहा - महाराज आपके दरबार में जब नीलकेतु आया था, तभी मैं समझ गया था। फिर मैंने अपने साथियों से इसका पीछा करने को कहा था, जहां पर नीलकेतु आपको मारने की योजना बना रहा था। तेनालीराम की समझदारी पर राजा कृष्‍णदेव ने खुश होकर उन्हें धन्‍यवाद दिया।

Thursday, 6 August 2015

हर -हर महादेव


                                    " ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम् ।
                                      उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।"

Monday, 3 August 2015

हर -हर महादेव

  • "जो हो गया उसे सोचा नहीं करते 
  • जो मिल गया उसे खोया नहीं करते 
  • हासिल उन्हें होती है सफलता 
  • जो वक्त और हालात पर 
  • रोया नहीं "