Monday, 20 June 2016

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी



श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी , हे नाथ नारायण वासुदेव 

एक मात स्वामी ,सखा हमारे 
 हे नाथ नारायण वासुदेव
बन्दीगृह के तुम अवतारी 
कही जन्मे , कही पले मुरारी 
किसी के जायें , किसी के खाये 
है अदभूत हर बात तुम्हारी 
गोकुल में चमके मथुरा के तारे 
हे नाथ नारायण वासुदेव
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी , हे नाथ नारायण वासुदेव 
अधर पे बांसी ह्रदय में राधे 
बट गये दोनों में आधे-आधे 
हे राधे  नागर हे भक्त वत्सल 
सदैव भक्तों के काम साध
 वहीँ गए जहाँ गए पुकारे 
हे नाथ नारायण वासुदेव 
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी , हे नाथ नारायण वासुदेव। .. 



Thursday, 2 June 2016

                                                                        कटु सत्य
                                                                  ============


Tuesday, 31 May 2016

मेरे तो गिरिधर गोपाल

मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥।
छाँड़ि दी कुल की कानि कहा करिहै कोई।
संतन ढिंग बैठि-बैठि लोक लाज खोई॥
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई।
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अँसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछा पिये कोई॥
भगत देख राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी "मीरा" लाल गिरिधर तारो अब मोही॥


Wednesday, 25 May 2016


एकबार केशवचंद्र विवाद करने गये थे रामकृष्ण से। वे रामकृष्ण की बातों का खंडन करने गये थे, सारे कलकत्ते में खबर फैल गई थी कि चलें, केशवचंद्र की बातें सुनें, रामकृष्ण तो गांव के गंवार हैं, क्या उत्तर दे सकेंगे केशवचंद्र का? केशवचंद्र तो बड़ा पंडित है!
बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी थी। रामकृष्ण के शिष्य बहुत डरे हुए थे, कि केशव के सामने रामकृष्‍ण क्या बात कर सकेंगे! कहीं ऐसा न हो कि फजीहत हो जाये। सब मित्र तो डरे हुए थे, लेकिन रामकृष्ण बार-बार द्वार पर आकर पूछते थे कि ‘केशव अभी तक आये नहीं’? एक भक्त ने कहा भी, ‘आप पागल होकर प्रतीक्षा कर रहे हैं! क्या आपको पता नहीं कि आप दुश्मन की प्रतीक्षा कर रहे हैं? वे आकर आपकी बातों का खंडन करेंगे। वे बहुत बड़े तार्किक हैं।’
रामकृष्ण कहने लगे, ‘वही देखने के लिये मैं आतुर हो रहा हूं; क्योंकि इतना तार्किक आदमी अधार्मिक कैसे रह सकता है, यही मुझे देखना है। इतना विचारशील आदमी कैसे धर्म के विरोध में रह सकता है, यही मुझे देखना है। यह असंभव है।
‘केशव आये, और केशव ने विवाद शुरू किया। केशव ने सोचा था, रामकृष्ण उत्तर देंगे। लेकिन केशव एक-एक तर्क देते थे और रामकृष्ण उठ-उठ कर उन्हें गले लगा लेते थे; आकाश की तरफ हाथ जोड़कर किसी को धन्यवाद देने लगते थे।
थोड़ी देर में केशव बहुत मुश्किल में पड़ गये। उनके साथ आये लोग भी मुश्किल में पड़ गये। आखिर केशव ने पूछा, ‘ आप करते क्या हैं? क्या मेरी बातों का जवाब नहीं देंगे? और हाथ जोड़कर आकाश में धन्यवाद किसको देते हैं?’
रामकृष्ण ने कहा, ‘‘मैंने बहुत चमत्कार देखे, यह चमत्कार मैंने नहीं देखा। इतना बुद्धिमान आदमी, इतना विचारशील आदमी धर्म के विरोध में कैसे रह सकता है? जरूर इसमें कोई उसका चमत्कार है। इसलिए मैं आकाश में हाथ उठाकर ‘उसे’ धन्यवाद देता हूं। और तुमसे मैं कहता हूं तुम्हें मैं जवाब नहीं दूंगा, लेकिन जवाब तुम्हें मिल जायेंगे; क्योंकि जिसका चित्त इतना मुक्त होकर सोचता है, वह किसी तरह के बंधन में नहीं रह सकता। वह अधर्म के बंधन में भी नहीं रह सकता। झूठे धर्म के बंधन तुमने तोड़ डाले हैं, अब जल्दी, अधर्म के बंधन भी टूट जायेंगे। क्योंकि, विवेक अंततः सारे बंधन तोड़ देता है। और जहां सारे बंधन टूट जाते हैं, वहां जिसका अनुभव होता है, वही धर्म है, वही परमात्मा है। मैं कोई दलील नहीं दूंगा। तुम्हारे पास दलील देने वाला बहुत अद्भुत मस्तिष्क है। वह खुद ही दलील खोज लेगा। ”
केशव सोचते हुए वापस लौटे। और उस रात उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ‘आज मेरा एक धार्मिक आदमी से मिलना हो गया है। और शायद उस आदमी ने मेरा रूपांतरण भी शुरू कर दिया है। मैं पहली बार सोचता हुआ लौटा हूं कि उस आदमी ने मुझे कोई उत्तर भी नहीं दिया और मुझे विचार में भी डाल दिया है! ”

"सुख " और "दु:ख "

"सुख " और "दु:ख "
हमारे पारिवारिक सदस्य नहीं।, मेहमान है ।
बारी बारी से आयेंगे ,
कुछ दिन ठहर कर चले जाएंगे
अगर वो नहीं आयेंगे तो
हम अनुभव कहाँ से पाएंगे ।


Tuesday, 24 May 2016

Monday, 23 May 2016

                                                                       कटु सत्य
                                                              ==============


                                                                  अर्धनारीश्वर नृत्य

Wednesday, 11 May 2016





***शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्***
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय
दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥३॥
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय ॥४॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

Saturday, 7 May 2016

रामकृष्ण परमहंस कहते है :-
                                       " भगवान दो मौकों पर हँसता है 'एक तो तब ,जब दो भाई रस्सी लेकर ज़मीन  को नापते है और कहते है -"इतनी ज़मीन मेरी है इतनी 'तेरी' और दुसरे तब ,जब कालदेव (यमराज) सिर पर खड़े है और डॉक्टर कहता है -"मैं इस रोगी को बचा लूँगा "।
    

Friday, 6 May 2016

                                                          गोविन्द बोलो हरि, गोपाल बोलो 
                                                            राधा रमण हरि ,गोपाल बोलो 
 

Sunday, 1 May 2016

हवा में उड़ता जाये रे. . . . मेरा राम दुलारा।  . . . 
लंका दिये जलाई रे . . . देखो अंजलि का लाला  . . . . . 
  

Saturday, 30 April 2016

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।
जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा । ।
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ ।
हरष समेत पवनसुत लयऊ । ।
"मोरें ह्रद्य परम संदेहा । 
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा । । 
कनक भूधराकार सरीरा । 
समर भयंकर अतिबल बीरा । । 
सीता मन भरोस तब भयऊ ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ । । "