Tuesday, 22 September 2015

“रुनक झुनक पग नेवर बाजे,




“रुनक झुनक पग नेवर बाजे,गजानन्द नाचे ।
आज म्हारे गणपति जी नाचे , आजम्हारे गजानंद नाचे।।
माता तुम्हारी है दुर्गाजी, सिंह चढ़ी गाजे ।। आज.....
पिता तुम्हारे है शिवशंकर, नान्देश्वर साजे ।। आज...
मूसक वाहन सूण्ड-सूण्डाला, एक दन्त साजे ।। आज...
गल पुष्पन को हार विराजे, कोटि काम लाजे ।। आज...
मूसक वाहन दुन्द दुन्दाला , अरुमोदक खाजे ।। आज...
विघ्न निवारण मंगल कारण, राजनपति राजे ।। आज...
तुलसीदास गणपतिजी न सुंमरयां, दुःख दारिद्र भाजे ।।
आज म्हारे गणपति जी नाचे , आजम्हारे गजानंद नाचे।।

Friday, 28 August 2015

happy raksha bandhan


भोले शंकर जी की आरती


जय शिव ओंकारा
 जय शिव ओंकारा, हर  शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज ते  सोहे ।
तीनो  रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
कंचन मृगमद लोचन भाले शशिधारी  ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक ब्र्ह्मादि  भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
जगकर्ता जगहर्ता जगपालन करता 
ॐ जय शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा.



Monday, 24 August 2015

खास अवसर


मेरे एक मित्र  ने अपनी पत्नी की अलमारी खोली और एक पैकेट निकाला।  बोला कि "ये कोई साधारण पैकेट नहीं है "। उसने पैकेट खोला तो उसमे से एक बेहद खूबसूरत सिल्क की साड़ी और उसके साथ एक ज्वैलरी सैट  निकला जिसे मित्र एकटक देखने लगा।
            उसने कहा "ये हमने ८-९ साल पहले लिया था। उसने ये साड़ी कभी पहनी नहीं ,"क्योकि वह इसे किसी खास अवसर पर पहनना चाहती थी " । लेकिन वो खास अवसर आया ही नहीं ,और आज अचानक उसकी मृत्यु हो गई।
           उसने उस पैकेट को अपनी पत्नी की अर्थी के पास रख दिया। और रोते  हुए बोला "किसी भी खास मौके के लिए कभी कुछ खास को बचाकर मत रखना ,क्योकि जिंदगी का हर दिन खास होता है भाई और कल का कुछ भरोसा नहीं है "
           इसलिए मित्रो जिंदगी खुल कर जिओ। जो भी है वो आज है कल का कोई भरोसा नहीं है    

Thursday, 20 August 2015

हर-हर महादेव


**सूर्य को अर्घ देने (जल चढ़ाने) का मंत्र**

                                                                               
                                               "ॐ ऐही सूर्य नमस्तुभ्यं, तेजो राशि जगत्पते।
                                                   अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकरः|"

Tuesday, 18 August 2015

भोले भण्डारी की बारात



हो..शिवजी बिहाने चले
पालकी सजाय के
भभूति लगाय के, हाँ ..
ओ शिवजी बिहाने चले पालकी सजाय के
भभूति लगाय के, पालकी सजाय के, हाँ ...
हो.. जब शिव बाबा करे तैय्यारी
कईके सकल समान हो..
दईने अंग त्रिशूल विराजे
नाचे भूत शैतान हो..
ब्रह्मा चले विष्णु चले
लईके वेद पुरान हो..
शंख, चक्र और गदा धनुष लै
चले श्री भगवान हो...
और बन-ठन के चलें बम भोला
लिये भांग-धतूर का गोला
बोले ये हरदम
चले लाड़का पराय के..
हो भभूति लगाय के
पालकी सजाय के... हाँ ....
हो शिवजी बिहाने चले....

ओ माता मतदिन पर चंचललि
 तिलक जलि लिल्हार हो
 काला नाग गर्दन के नीचे
वोहू दियन फ़ुफ़कार हो..
लोटा फ़ेंक के भाग चलैलि
ताविज निकल लिलार हो..
इनके संगे बिबाह ना करबो
गौरी रही कुंवारी हो
कहें पारवती समझाईं
बतियाँ मानो हमरो माईं
जै भराइलै हाँ हम करमवा लिखाय के
भभूति लगाय के
पालकी सजाय के... हाँ...
हो शिवजी बिहाने चले....

ओ.. जब शिव बाबा मंडवा गईले
होला मंगलाचार हो
बाबा पंडित वेद विचारे
होला गस्साचार हो
बजरबाटी की लगी झालरी
नागिन की अधिकार हो
विज मंडवा में नावन अईली
करे झंगन वडियार हो..
एगो नागिन गिले विदाई
हो भभूति लगाय के
पालकी सजाय के.. हाँ..
हो शिवजी बिहाने चले...

ओ कोमल रूप धरे शिवशंकर
 खुशी भये नर-नारी हो
राजहि नाचन गान करईले
इज्जत रहें हमार हो
रहें वर साथी शिवशंकर से
केहू के ना पावल पार हो
इनके जटा से गंगा बहिली
महिमा अगम अपार हो..
इनको तीनो लोक दिखाये
कहे दुःखहरन
 यही छड़ो बनवाए के
 भभूति लगाय के
 पालकी सजाय के हाँ..


                              " हर-हर महादेव "



ॐ नमो भगवते

अर्द्धनारीश्वर 



Monday, 17 August 2015

 

"छोटी -छोटी बातों में आनंद खोजना चाहिए 

  क्योकिं बड़ी-बड़ी बातें तो जीवन में चंद ही होती हैं " 

Sunday, 16 August 2015

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्




ॐ  नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय 
भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय 
तस्मै न काराय नम: शिवाय ॥1॥

मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय
 नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
                                                              मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
 तस्मै म काराय नम: शिवाय ॥2॥

शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द 
सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय।
                                                               श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
 तस्मै शि काराय नम: शिवाय ॥3॥

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य 
मुनीन्द्रदे वार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय 
तस्मै व काराय नम: शिवाय ॥4॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय 
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
 तस्मै य काराय नम: शिवाय ॥5॥


"पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकम अवाप्नोति शिवेन सह मोदते "

Thursday, 13 August 2015

गिला


जीवन का बड़ा भाग इसी घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे पति संसार की नजर मे बड़े सज्जन , बड़े शिष्ट, बड़े उदार ,बड़े सौम्य होंगे। लेकिन जिस पर गुजरती है वो ही जनता है  

 संसार को उन लोगो की प्रशंसा करने में आनंद आता है ,जो अपने घर को भाड़ में झोंक रहे हो ,गैरो के पीछे अपना सर्वनाश कर डालते हो।  जो प्राणी घरवालो के लिए मरता है ,उसकी प्रशंसा संसार वाले नहीं करते। वह तो उनकी दृष्टि में स्वार्थी है, कृपण है ,संकीर्ण हृदय है  

Monday, 10 August 2015

क्या आप ठीक है


मैं अपने रास्ते जा रहा था। मुझे कुछ सामान लेना था। तभी मेरी नजर एक आदमी पर गई। जिसकी उम्र करीब २९-३० साल होगी। वह बिलकुल पुल के किनारे खड़ा था। मैंने कहा 'अजीब आदमी है '. मैं रुक गया और उससे पुछा कि क्या वह ठीक है ?उसकी आँखों से लग रहा था कि वह ठीक नहीं है
           उसने  कुछ नहीं कहा। मैं उसकी आँखों से निकल रहे आंसुओ को देख रहा था। मैं कुछ नहीं बोला। उसे खुद को सँभालने दिया।  मैं पास की सीढ़ियों पर बैठ गया।  वह भी मेरे पास बैठ गया। हम करीब ४५ मिनिट तक बात करते रहे। वह बता रहा था की उसके साथ क्या हुआ ,किस बात का दुख है और क्यों वह इतना अकेला हो गया है। मैं उसे वहा  अकेला नहीं छोड़ सकता था, लेकिन मुझे जाना भी जरुरी था
            मैं एम्बुलेंस को फ़ोन करने लगा और कहा की वे उसकी सहायता करेंगे। पर वह ऐसा करने से मन करने लगा ,प्लीज एम्बुलेंस मत बुलाएं। मैं ठीक हूँ.मैं बस थोड़ी देर की चहलकदमी की बाद ठीक हो जाऊंगा।  पर मुझे ऐसी हालत में उसे वहा अकेला छोड़ना सही नहीं लगा। मैंने एम्बुलेंस को फ़ोन किया वह उसे हॉस्पिटल ले गई मैंने उसका नंबर ले लिया ,ताकि जान सकु कि वह कैसा है।
             ३-४ महीने बाद उसने संदेश भेजा की उसकी पत्नी माँ बनने वाली है ,और उसको जो बच्चा  होगा वे उसका नाम मेरे नाम पर रखेंगे।  मैं हैरान था कि वे अपने बच्चे  का नाम मुझ पर रखने जा रहे थे
            उसने बताया कि जब मैं उसके पास पंहुचा था तो वह बस कूद कर आत्महत्या करने वाला था। मेरे कुछ  शब्दों ने उसकी जिंदगी को बचा लिया था। वह बोला ,'मेरे दिमाग़ में अभी भी ,"
क्या आप ठीक है " के शब्द गूंजते रहते है। '
           मैं वाकई समझ नहीं पा रहा था कि ये शब्द कैसे जिंदगी बचा सकते है ? पर उसने कहा ,एक बार सोच कर देखे की अगर आपने उस वक्त नहीं पुछा होता कि 'क्या आप ठीक है ' तो क्या मैं आज ................... 

Sunday, 9 August 2015

शिवताण्डवस्तोत्रम्


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥


जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥


जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥


सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥


ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥


नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥


प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥


अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥


जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


॥ इति शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

राधे -राधे



तेनालीराम की सूझबूझ


एक बार राज दरबार में नीलकेतु नाम का यात्री राजा कॄष्णदेव राय से मिलने आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे दी।

यात्री एकदम दुबला-पतला था। वह राजा के सामने आया और बोला- महाराज, मैं नीलदेश का नीलकेतु हूं और इस समय मैं विश्व भ्रमण की यात्रा पर निकला हूं। सभी जगहों का भ्रमण करने के पश्चात आपके दरबार में पहुंचा हूं।

राजा ने उसका स्वागत करते हुए उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा से मिले सम्‍मान से खुश होकर वह बोला- महाराज! उस जगह को जानता हूं, जहां पर खूब सुंदर-सुंदर परियां रहती हैं। मैं अपनी जादुई शक्ति से उन्हें यहां बुला सकता हूं। नीलकेतु की बात सुन राजा खुश होकर बोले - इसके लिए मुझे क्‍या करना चाहिए?

उसने राजा कृष्‍णदेव को रा‍त्रि में तालाब के पास आने के लिए कहा और बोला कि उस जगह मैं परियों को नृत्‍य के लिए बुला भी सकता हूं। नीलकेतु की बात मान कर राजा रात्रि में घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर निकल गए।

तालाब के किनारे पहुंचने पर पुराने किले के पास नीलकेतु ने राजा कृष्‍णदेव का स्‍वागत किया और बोला- महाराज! मैंने सारी व्‍यवस्‍था कर दी है। वह सब परियां किले के अंदर हैं।

राजा अपने घोड़े से उतर नीलकेतु के साथ अंदर जाने लगे। उसी समय राजा को शोर सुनाई दिया। देखा तो राजा की सेना ने नीलकेतु को पकड़ कर बांध दिया था। 

यह सब देख राजा ने पूछा- यह क्‍या हो रहा है?  

तभी किले के अंदर से तेनालीराम बाहर निकलते हुए बोले - महाराज! मैं आपको बताता हूं? 

तेनालीराम ने राजा को बताया - यह नीलकेतु एक रक्षा मंत्री है और महाराज...., किले के अंदर कुछ भी नहीं है। यह नीलकेतु तो आपको जान से मारने की तैयारी कर रहा है। 

राजा ने तेनालीराम को अपनी रक्षा के लिए धन्यवाद दिया और कहा- तेनालीराम यह बताओं, तुम्हें यह सब पता कैसे चला?

तेनालीराम ने राजा को सच्‍चाई बताते हुए कहा - महाराज आपके दरबार में जब नीलकेतु आया था, तभी मैं समझ गया था। फिर मैंने अपने साथियों से इसका पीछा करने को कहा था, जहां पर नीलकेतु आपको मारने की योजना बना रहा था। तेनालीराम की समझदारी पर राजा कृष्‍णदेव ने खुश होकर उन्हें धन्‍यवाद दिया।

Thursday, 6 August 2015

हर -हर महादेव


                                    " ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम् ।
                                      उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।"

Monday, 3 August 2015

हर -हर महादेव

  • "जो हो गया उसे सोचा नहीं करते 
  • जो मिल गया उसे खोया नहीं करते 
  • हासिल उन्हें होती है सफलता 
  • जो वक्त और हालात पर 
  • रोया नहीं " 

Friday, 31 July 2015

कमियां निकालना



 एक मशहूर चित्रकार था उसने बहुत सुंदर पेटिंग बनाई और उसे नगर के बीचो बीच लटका दिया और उस पर नीचे लिख दिया कि जिस किसी को भी इसमें कमियां नजर आये वो उस जगह पर निशान लगा दे उसने शाम को जब देखा तो बहुत दुखी हुआ क्योंकि उसकी पूरी तस्वीर पर निशान लगे हुए थे और वह पूरी खराब हो चुकी थी उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें |
दुखी मन  वाली स्थिति में वो बैठा था कि उसका एक मित्र उसके पास आया तो उसने उस से दुखी होने कारण पूछा तो चित्रकार ने  उस से अपनी समस्या कही | इस पर मित्र ने उसे कहा कल एक दूसरी तस्वीर बनाना और उसे भी शहर के बीचो बीच लटका देना और नीचे लिख देना कि इस तस्वीर में जिस किसी को भी कोई कमी नजर आये तो उसे ठीक कर दें | चित्रकार ने अगले दिन यही किया | शाम को जब उसने तस्वीर देखो तो बड़ा हेरान हुआ हुआ क्योंकि किसी ने तस्वीर के कुछ भी नहीं किया | वह संसार की नीति समझ गया कि किसी की कमियां निकालना आसान होता है बड़ी आसानी से लोग किसी की बुराई और निंदा करते है लेकिन उस कमी को दूर करना उतना ही मुश्किल होता है |

Thursday, 30 July 2015


जिन्दगी जब रुलाने लगे तो 
इतना मुस्कराओ कि दर्द भी शर्माने लगे । 
निकले न आंसू आँखों से कभी 
किस्मत भी मजबूर होकर आपको हंसाने लगे ।

Monday, 20 July 2015

आनंद

 

"छोटी -छोटी बातों में आनंद खोजना चाहिए 

  क्योकिं बड़ी-बड़ी बातें तो जीवन में चंद ही होती हैं " 

Saturday, 18 July 2015

सबसे बड़ी समस्या

बहुत समय पहले की बात है एक महा ज्ञानी पंडित हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहते थे . लोगों के बीच रह कर वह थक चुके थे और अब ईश्वर भक्ति करते हुए एक सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे . लेकिन उनकी प्रसिद्धि इतनी थी की


लोग दुर्गम  पहाड़ियों , सकरे रास्तों , नदी-झरनो को पार कर के भी उससे मिलना चाहते थे , उनका मानना था कि यह विद्वान उनकी हर समस्या का समाधान कर सकता है .
इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे . पंडित जी ने उन्हें इंतज़ार करने के लिए कहा .
तीन दिन बीत गए , अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए , जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले ” आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा , पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और से इस स्थान के  बारे में  नहीं बताएँगे , ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ …..चलिए अपनी -अपनी समस्याएं बताइये|
यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की , लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी  बात कहनी शुरू कर दी . सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा | इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे . कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली -बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा ” कृपया शांत हो जाइये ! अपनी -अपनी समस्या एक पर्चे पे लिखकर मुझे दीजिये .
सभी ने अपनी -अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी . पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले , ” इस टोकरी को एक-दूसरे को पास कीजिये , हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा . उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?”
हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता , उसे पढता और सहम सा जाता . एक -एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ. सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है . दो घंटे बाद सभी अपनी-अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे , वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे।
दोस्तों  ऐसा कौन होगा जिसके जीवन में एक भी समस्या न हो ? हम सभी के जीवन में समस्याएं हैं।  कोई अपने  स्वास्थ्य से परेशान है तो कोई पैसे  से …हमें इस बात को स्वीकार  करना चाहिए कि जीवन है तो छोटी -बड़ी समस्याएं आती ही रहेंगी , ऐसे में दुखी हो कर उसी के बारे में सोचने से अच्छा है कि हम अपना ध्यान उसके निवारण में लगाएं। … हमें लगता है कि सबसे बड़ी समस्या हमारी ही है पर यकीन जानिए इस दुनिया में लोगों के पास इतनी बड़ी -बड़ी समस्याएं हैं कि हमारी तो उनके सामने कुछ भी नहीं … इसलिए ईश्वर ने जो भी दिया है उसके लिए उसका  आभार मानिये  और एक खुशहाल जीवन जीने का प्रयास करिये।

Wednesday, 15 July 2015

मुसीबत का सामना

Motivational Story in Hindi Buffalo and Lion
जंगली भैंसों का एक झुण्ड जंगल में घूम रहा था , तभी एक  बछड़े (पाड़ा) ने पुछा , ” पिताजी, क्या इस जंगल में ऐसी कोई चीज है जिससे डरने की ज़रुरत है ?”
” बस शेरों से सावधान रहना …”, भैंसा बोला .
“हाँ , मैंने भी सुना है कि शेर बड़े खतरनाक होते हैं . अगर कभी मुझे शेर दिखा तो मैं जितना हो सके उतनी तेजी से दौड़ता हुआ भाग जाऊँगा ..”, बछड़ा बोला .
“नहीं , इससे बुरा तो तुम कुछ कर ही नहीं सकते ..”, भैंसा बोला
बछड़े को ये बात कुछ अजीब लगी , वह बोला ” क्यों ? वे खतरनाक होते हैं , मुझे मार सकते हैं तो भला मैं भाग कर अपनी जान क्यों ना बचाऊं ?”
भैंसा समझाने लगा , ” अगर तुम भागोगे तो शेर तुम्हारा पीछा करेंगे , भागते समय वे तुम्हारी पीठ पर आसानी से हमला कर सकते हैं और तुम्हे नीचे गिरा सकते हैं … और एक बार तुम गिर गए तो मौत पक्की समझो …”
” तो.. तो। .. ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए ?”, बछड़े ने घबराहट में पुछा .
” अगर तुम कभी भी शेर को देखो , तो अपनी जगह डट कर खड़े हो जाओ और ये दिखाओ की तुम जरा भी डरे हुए नहीं हो . अगर वो ना जाएं तो उसे अपनी तेज सींघें दिखाओ और  खुरों को जमीन पर पटको . अगर तब भी शेर ना जाएं तो धीरे -धीरे उसकी तरफ बढ़ो ; और अंत में तेजी से अपनी पूरी ताकत के साथ उसपर हमला कर दो .”, भैंसे ने गंभीरता से समझाया .
” ये तो पागलपन है , ऐसा करने में तो बहुत खतरा है … अगर शेर ने पलट कर मुझपर हमला कर दिया तो ??”, बछड़ा नाराज होते हुए बोला .
“बेटे , अपने चारों तरफ देखो ; क्या दिखाई देता है ?”, भैंसे ने कहा .
बछड़ा घूम -घूम कर देखने लगा , उसके चारों तरफ ताकतवर भैंसों का बड़ा सा झुण्ड था .
” अगर कभी भी तुम्हे डर लगे , तो ये याद रखो कि हम सब तुम्हारे साथ हैं . अगर तुम मुसीबत का सामना करने की बजाये , भाग खड़े होते हो , तो हम तुम्हे नहीं बचा पाएंगे ; लेकिन अगर तुम साहस दिखाते हो और मुसीबत से लड़ते हो तो हम मदद के लिए ठीक तुम्हारे पीछे खड़े होंगे .”
बछड़े ने गहरी सांस ली और अपने पिता को इस सीख के लिए धन्यवाद दिया .
हम सभी की ज़िन्दगी में शेर हैं … कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनसे हम डरते हैं , जो हमें भागने पर … हार मानने पर मजबूर करना चाहती हैं , लेकिन अगर हम भागते हैं तो वे हमारा पीछा करती हैं और हमारा जीना मुश्किल कर देती हैं . इसलिए उन मुसीबतों का सामना करिये … उन्हें दिखाइए कि आप उनसे डरते नहीं हैं … दिखाइए की आप सचमुच कितने ताकतवर हैं …. और पूरे साहस और हिम्मत के साथ उल्टा उनकी तरफ टूट पड़िये … और जब आप ऐसा करेंगे तो आप पाएंगे कि आपके परिवार और दोस्त पूरी ताकत से आपके पीछे खड़े हैं .

Monday, 13 July 2015

सुविचार

                             
                                   पवित्र और कोमल शब्दों से                      
                              कठोर दिलों को भी जीता जा सकता है 
                                                                    
                                                                                   -सुकरात …

Sunday, 12 July 2015

यदायदा हि घर्मस्य


                                   " यदायदा हि घर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
                                    अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मान स्रुजाम्यहम ॥
                                    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दूषक्रुताम ।
                                    घर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥"

Friday, 10 July 2015

यह भी नशा, वह भी नशा



होली के दिन राय साहब पण्डित घसीटेलाल की बारहदरी में भंग छन रही थी कि सहसा मालूम हुआ, जिलाधीश मिस्टर बुल आ रहे हैं। बुल साहब बहुत ही मिलनसार आदमी थे और अभी हाल ही में विलायत से आये थे। भारतीय रीति-नीति के जिज्ञासु थे, बहुधा मेले-ठेलों में जाते थे। शायद इस विषय पर कोई बड़ी किताब लिख रहे थे। उनकी खबर पाते ही यहाँ बड़ी खलबली मच गयी। सब-के-सब नंग-धड़ंग, मूसरचन्द बने भंग छान रहे थे। कौन जानता था कि इस वक्त साहब आएंगे। फुर-से भागे, कोई ऊपर जा छिपा, कोई घर में भागा, पर बिचारे राय साहब जहाँ के तहाँ निश्चल बैठे रह गये। आधा घण्टे में तो आप काँखकर उठते थे और घण्टे भर में एक कदम रखते थे, इस भगदड़ में कैसे भागते। जब देखा कि अब प्राण बचने का कोई उपाय नहीं है, तो ऐसा मुँह बना लिया मानो वह जान बूझकर इस स्वदेशी ठाट से साहब का स्वागत करने को बैठे हैं। साहब ने बरामदे में आते ही कहा-हलो राय साहब, आज तो आपका होली है?

राय साहब ने हाथ बाँध कर कहा-हाँ सरकार, होली है।

बुल- खूब लाल रंग खेलता है?

राय साहब- हाँ सरकार, आज के दिन की यही बहार है।

साहब ने पिचकारी उठा ली। सामने मटकों में गुलाल रखा हुआ था। बुल ने पिचकारी भरकर पण्डितजी के मुँह पर छोड़ दी तो पण्डितजी नहीं उठे। धन्य भाग! कैसे यह सौभाग्य प्राप्त हो सकता है। वाह रे हाकिम! इसे प्रजावात्सल्य कहते हैं। आह! इस वक्त सेठ जोखनराम होते तो दिखा देता कि यहाँ जिला में अफसर इतनी कृपा करते हैं। बताएँ आकर कि उन पर किसी गोरे ने भी पिचकारी छोड़ी है, जिलाधीश का कहना ही क्या। यह पूर्व-तपस्या का फल है, और कुछ नहीं। कोई पहले एक सहस्र वर्ष तपस्या करे, तब यह परम पद पा सकता है। हाथ जोडक़र बोले-धर्मावतार, आज जीवन सफल हो गया। जब सरकार ने होली खेली है तो मुझे भी हुक्म मिले कि अपने हृदय की अभिलाषा पूरी कर लूँ।

यह कहकर राय साहब ने गुलाल का एक टीका साहब के माथे पर लगा दिया।

बुल- इस बड़े बरतन में क्या रखा है, राय साहब?

राय- सरकार, यह भंग है। बहुत विधिपूर्वक बनाई गयी है हुजूर!

बुल-इसके पीने से क्या होगा?

राय-हुजूर की आँखें खुल जाएँगी। बड़ी विलक्षण वस्तु है सरकार।

बुल-हम भी पीएगा।

राय साहब को जान पड़ा मानो स्वर्ग के द्वार खुल गये हैं और वह पुष्पक विमान पर बैठे ऊपर उड़े चले जा रहे हैं। गिलास तो साहब को देना उचित न था, पर कुल्हड़ में देते संकोच होता था। आखिर बहुत ऊँच-नीच सोचकर गिलास में भंग उँड़ेली और साहब को दी। साहब पी गये। मारे सुगन्ध के चित्त प्रसन्न हो गया।



दूसरे दिन राय साहब इस मुलाकात का जवाब देने चले। प्रात:काल ज्योतिषी से मुहूर्त पूछा। पहर रात गये साइत बनती थी, अतएव दिन-भर खूब तैयारियाँ कीं। ठीक समय पर चले। साहब उस समय भोजन कर रहे थे। खबर पाते ही सलाम दिया। राय साहब अन्दर गये तो शराब की दुर्गन्ध से नाक फटने लगी। बेचारे अंग्रेजी दवा न पीते थे, अपनी उम्र में शराब कभी न छुई थी। जी में आया कि नाक बन्द कर लें, मगर डरे कि साहब बुरा न मान जाएँ। जी मचला रहा था, पर साँस रोके बैठे हुए थे। साहब ने एक चुस्की ली और गिलास मेज पर रखते हुए बोले-राय साहब हम कल आप का बंग पी गया, आज आपको हमारा बंग पीना पड़ेगा। आपका बंग बहुत अच्छा था। हम बहुत-सा खाना खा गया।

राय-हुजूर, हम लोग मदिरा हाथ से भी नहीं छूते। हमारे शास्त्रों में इसको छूना पाप कहा गया है।

बुल-(हँसकर) नहीं, नहीं, आपको पीना पड़ेगा राय साहब! पाप-पुन कुछ नहीं है। यह हमारा बंग है, वह आपका बंग है। कोई फरक नहीं है। उससे भी नशा होता है, इससे भी नशा होता है, फिर फरक कैसा?

राय-नहीं, धर्मावतार, मदिरा को हमारे यहाँ वर्जित किया गया है।

बुल-ऐसा कभी होने नहीं सकता। शास्त्र मना करेगा तो इसको भी मना करेगा, उसको भी मना करेगा। अफीम को भी मना करेगा। आप इसको पिएँ, डरें नहीं। बहुत अच्छा है।

यह कहते हुए साहब ने एक गिलास में शराब उँड़ेलकर राय साहब के मुँह से लगा ही तो दी। राय साहब ने मुँह फेर लिया और आँखें बन्द करके दोनों हाथों से साहब का हाथ हटाने लगे। साहब की समझ में यह रहस्य न आता था। वह यही समझ रहे थे कि यह डर के मारे नहीं पी रहे हैं। अपने मजबूत हाथों से राय साहब की गरदन पकड़ी और गिलास मुँह की तरफ बढ़ाया। राय साहब को अब क्रोध आ गया। साहब खातिर से सब कुछ कर सकते थे; पर धर्म नहीं छोड़ सकते थे। जरा कठोर स्वर में बोले-हुजूर, हम वैष्णव हैं। हम इसे छूना भी पाप समझते हैं।

राय साहब इसके आगे और कुछ न कह सके। मारे आवेश में कण्ठावरोध हो गया। एक क्षण बाद जरा स्वर को संयत करके फिर बोले-हुजूर, भंग पवित्र वस्तु है। ऋषि, मुनि, साधु, महात्मा, देवी, देवता सब इसका सेवन करते हैं। सरकार, हमारे यहाँ इसकी बड़ी महिमा लिखी है। कौन ऐसा पण्डित है, जो बूटी न छानता हो। लेकिन मदिरा का तो सरकार, हम नाम लेना भी पाप समझते हैं।

बुल ने गिलास हटा लिया और कुरसी पर बैठकर बोला-तुम पागल का माफ़िक बात करता है। धरम का किताब बंग और शराब दोनों को बुरा कहता है। तुम उसको ठीक नहीं समझता। नशा को इसलिए सारा दुनिया बुरा कहता है कि इससे आदमी का अकल खत्म हो जाता है। तो बंग पीने से पण्डित और देवता लोग का अकल कैसे खप्त नहीं होगा, यह हम नहीं समझ सकता। तुम्हारा पण्डित लोग बंग पीकर राक्षस क्यों नहीं होता! हम समझता है कि तुम्हारा पण्डित लोग बंग पीकर खप्त हो गया है, तभी तो वह कहता है, यह अछूत है, वह नापाक है, रोटी नहीं खाएगा, मिठाई खाएगा। हम छू लें तो तुम पानी नहीं पीएगा। यह सब खप्त लोगों का बात। अच्छा सलाम!

राय साहब की जान-में-जान आयी। गिरते-पड़ते बरामदे में आये, गाड़ी पर बैठे और घर की राह ली।

                                                                                                        [मुंशी प्रेमचंद ]

Thursday, 9 July 2015

योग के फायदे

 

1. योग का प्रयोग शारीरिक , मानसिक और आध्यत्मिक लाभों के लिए हमेशा से होता रहा है l आज की चिकित्सा शोधों ने ये साबित कर दिया है की योग शारीरिक और मानसिक रूप से मानवजाति के लिए वरदान है |
2. जहाँ जिम आदि से शरीर के किसी खास अंग का ही व्यायाम होता है वहीँ योग से शरीर के समस्त अंग प्रत्यंगों,ग्रंथियों का व्यायाम होता है जिससे अंग प्रत्यंग सुचारू रूप से कार्य करने लगते हैं |
3. योगाभ्यास से रोगों से लड़ने की शक्ति बढती है | बुढ़ापे में भी स्फूर्तिवान बने रह सकते हैं त्वचा पर चमक आती है शरीर स्वस्थ,निरोग और बलवान बनता है |
4. जहाँ एक तरफ योगासन मांस पेशियों को पुष्टता प्रदान करते हैं जिससे दुबला पतला व्यक्ति भी ताकतवर और बलवान बन जाता है वहीँ दूसरी ओर योग के नित्य अभ्यास से शरीर से मोटापा (फैट) कम भी हो जाता है इस तरह योग कृष और स्थूल दोनों के लिए फायदेमंद है |
5. योगासनों के नित्य अभ्यास से मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता है | जिससे तनाव दूर होकर अच्छी नींद आती है, भूख अच्छी लगती है, पाचन सही रहता है|
6. प्राणायाम एवं ध्यान भी योगासनों की तरह शरीर के लिए बहुत फायदेमंद हैं, प्राणायाम के द्वारा श्वास प्रश्वास की गति पर नियंत्रण होता है जिससे श्वसन संस्थान सम्बन्धित रोगों में बहुत फायदा मिलता है | दमा, एलर्जी, साइनोसाइटिस,पुराना नजला, जुकाम आदि रोगों में तो प्राणायाम बहुत फायदेमंद है ही साथ ही इससे फेफड़ों की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है जिससे शरीर की कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलने लगती है जिसका पूरे शरीर पर सकारात्मक असर पड़ता है |
7. साथ ही ध्यान भी योग का अतिमहत्वपूर्ण अंग है | आजकल ध्यान यानि मेडिटेशन का प्रचार हमारे देश से भी ज्यादा विदेशों में हो रहा है आज की भौतिकता वादी संस्कृति में दिन रात भाग दौड़, काम का दबाव, रिश्तो में अविश्वास आदि के कारण तनाव बहुत बढ़ गया है |  ध्यान से मानसिक तनाव दूर होकर गहन आत्मिक शांति महसूस होती है, कार्य शक्ति बढती है ,नींद अच्छी आती है | मन की एकाग्रता एवं धारणा शक्ति बढती है|
8. योग से ब्लड शुगर का लेवल घटता है और ये बैड कोलेस्ट्रोल को भी कम करता है। डायबिटीज रोगियों के लिए योग बेहद फायदेमंद है। 
9. कुछ अध्यनों में पाया गया है कि कुछ योगासनो और मैडिटेशन के द्वारा आर्थराइटिस, बैक पेन आदि दर्द में काफी सुधार होता है और दवा जी ज़रुरत कम होती जाती है।
10. योग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है और दवाओं पर आपकी निर्भरता को घटता है। 

Monday, 6 July 2015

नींद


एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी संपत्ति देकर चल बसा। सम्पत्ति का मालिक बनने के बाद नौकर रात को सोने की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद नहीं आ रही थी। एक रात जब वह सोने की कोशिश कर रहा था, उसने कुछ आहट सुनी। देखा, एक चोर घर का सारा सामान समेट कर उसे बांधने की कोशिश कर रहा था, परन्तु चादर छोटी होने के कारण गठरी बंध नहीं रही थी।
नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं।  

Monday, 29 June 2015

नज़र

           गोद मैं बच्चा लिए व हाथ मैं झोला लटकाए एक ग्रामीण महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एक दम से वह निराश हो गयी, फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर बैठने  कीजगह मिल जाए, वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी , उस पर बस एक युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से बैठ गई ।

अरे रे.....  कहाँ बैठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी।
 
आंखों मैं उभरी चमक  गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच गैलरी मैं ही बैठ गयी, इसके बाद उस खालीसीट को देख कर आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,तभी एक युवती बस मैं चढ़ी , अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, कोई आएगा, नीचे गया होगा, टिकेट या फिर कूछ लेने , और वह भी खड़ी हो गयी उस नीचे बैठी महिला के पास।

बैठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा ।

इस आवाज पर युवती ने पीछे मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था,उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा ?

जी नही.

युवक उसी मुस्कान के साथ बोला। इस पर युवती मुडी और नीचे बेठी उस बच्चे वाली महिला को वहां बैठा दिया। उस अब युवक का चेहरा देखने लायक था ।

Sunday, 28 June 2015

शब्द

एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और पूछा, ‘‘मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।’’ साधु ने कहा कि पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों-बीच उड़ा दो। किसान ने ठीक वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने उससे कहा था और फिर साधु के पास लौट आया। लौटने पर साधु ने उससे कहा, ‘‘अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।’’  नादान किसान जब वैसा करने पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल नहीं बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले, वह वापस साधु के पास आ गया। यह देख साधु ने उससे कहा, ‘‘ऐसा ही मुँह से निकले शब्दों के साथ भी होता है।’’

गुरु जी की सीख

बहुत समय पहले की बात है. एक बार एक गुरु जी गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे .

तभी एक राहगीर आया और उनसे पूछा , ” महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं, दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ ?”

गुरु जी बोले, ” जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?”
” मत पूछिए महाराज , वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं.”, राहगीर बोला.

गुरु जी बोले, ” इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं…कपटी, दुष्ट, बुरे…” और इतना सुनकर राहगीर आगे बढ़ गया.

कुछ समय बाद एक दूसरा राहगीर वहां से गुजरा. उसने भी गुरु जी से वही प्रश्न पूछा , ”
मुझे किसी नयी जगह जाना है, क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?”

” जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?”, गुरु जी ने इस राहगीर से भी वही प्रश्न पूछा.

” जी वहां तो बड़े सभ्य , सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं.”, राहगीर बोला.

” तुम्हे बिलकुल उसी प्रकार के लोग यहाँ भी मिलेंगे…सभ्य, सुलझे और अच्छे ….”, गुरु जी ने अपनी बात पूर्ण की और दैनिक कार्यों में लग गए. पर उनके शिष्य ये सब देख रहे थे और राहगीर के जाते ही उन्होंने पूछा , ” क्षमा कीजियेगा गुरु जी पर आपने दोनों राहगीरों को एक ही स्थान के बारे में अलग-अलग बातें क्यों बतायी.

गुरु जी गंभीरता से बोले, ” शिष्यों आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते जैसी वे हैं, बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते हैं जैसे कि हम खुद हैं. हर जगह हर प्रकार के लोग होते हैं यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं.”

शिष्य उनके बात समझ चुके थे और आगे से उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाइयों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निश्चय किया.

Friday, 26 June 2015

सुकरात के तीन सवाल


प्राचीन यूनान में सुकरात नाम के विद्वान हुए हैं। वे ज्ञानवान और विनम्र थे। एक बार वे बाजार से गुजर रहे थे तो रास्ते में उनकी मुलाकात एक परिचित व्यक्ति से हुई। उन सज्जन ने सुकरात को रोककर कुछ बताना शुरू किया। वह कहने लगा कि 'क्या आप जानते हैं कि कल आपका मित्र आपके बारे में क्या कह रहा था?'

सुकरात ने उस व्यक्ति की बात को वहीं रोकते हुए कहा - सुनो, भले व्यक्ति। मेरे मित्र ने मेरे बारे में क्या कहा यह बताने से पहले तुम मेरे तीन छोटे प्रश्नों का उत्तर दो। उस व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा - 'तीन छोटे प्रश्न'।

सुकरात ने कहा - हाँ, तीन छोटे प्रश्न।
पहला प्रश्न तो यह कि क्या तुम मुझे जो कुछ भी बताने जा रहे हो वह पूरी तरह सही है?
उस आदमी ने जवाब दिया - 'नहीं, मैंने अभी-अभी यह बात सुनी और ...।'
सुकरात ने कहा- कोई बात नहीं, इसका मतलब यह कि तुम्हें नहीं पता कि तुम जो कहने जा रहे हो वह सच है या नहीं।'

अब मेरे दूसरे प्रश्न का जवाब दो कि 'क्या जो कुछ तुम मुझे बताने जा रहे हो वह मेरे लिए अच्छा है?' आदमी ने तुरंत कहा - नहीं, बल्कि इसका ठीक उल्टा है। सुकरात बोले - ठीक है। अब मेरे आखिरी प्रश्न का और जवाब दो कि जो कुछ तुम मुझे बताने जा रहे हो वह मेरे किसी काम का है भी या नहीं।
व्यक्ति बोला - नहीं, उस बात में आपके काम आने जैसा तो कुछ भी नहीं है। तीनों प्रश्न पूछने के बाद सुकरात बोले - 'ऐसी बात जो सच नहीं है, जिसमें मेरे बारे में कुछ भी अच्छा नहीं है और जिसकी मेरे लिए कोई उपयोगिता नहीं है, उसे सुनने से क्या फायदा। और सुनो, ऐसी बातें करने से भी क्या फायदा।

Thursday, 25 June 2015

मानसिकता



“जी नमस्ते, मेरा नाम सरिता है और में आपके बिलकुल ऊपर वाले फ्लैट में रहती हूँ...”

”जी नमस्ते, कहिए?”

” मुझें घर में काम करने के लिए एक बाई की जरूरत है तो क्या अपनी बाई को ऊपर भेज देंगी?”

”जरूर भेज दूँगी, वैसे कितने लोग है आप के घर में?”

” बस मैं अकेली ही हूँ।”

”अच्छा थोड़ी देर में बाई आ जाएगी।”

‘’जी धन्यवाद”... कहकर मेंने इंटेर्कोम रख दिया। थोड़ी देर बाद, दरवाजे की घंटी बजी तो  वाकई बाहर एक बाई को खड़ा पाया, मन में एक खुशी के लहर लहरा गयी...सोचा, चलो एक समस्या का समाधान तो आसानी से हो गया है। बाई से सारी बात तय हो गयी थी वक्त और पैसों को लेकर....और फिर कल से उसके आने का इंतज़ार भी शुरू हुआ...लगा कि बाई के हाथ में एक सुदर्शन चक्र है और वो कल से मेरे अव्यवस्थित घर की धुरी घुमा देगी। अगले रोज़ बाई का इंतज़ार करती रही पर वो नहीं आई। उसके अगले दिन मैं  परेशान सी लिफ्ट से उतर कर किसी नई बाई की तलाश में मुड़ी ही थी कि सामने से वही बाई दिखाई, वह मुझे देख कर कन्नी काटने की कोशिश में थी...मैंने उसे पकड़ कर पूछ ही लिया -”सब कुछ तय हो तो गया था फिर तुम आई क्यों नहीं?”

वो सकुचा कर बोली.....”मेमसाहब मैं तो आना चाहती थी पर आपके नीचे वाली आंटी जी ने मना  कर दिया आपके यहाँ आने से”....

”पर क्यों मना किया और तुमने उनकी बात भी मान ली, क्या तुम्हें और पैसा नहीं चाहिए?’

वो बोली...” पैसा किसे बुरा लगे हैं मेमसाहब, पर आप तो यहाँ हमेशा रहने वाली हो नहीं, उनका काम तो पक्का है न, और वो बोल रही थी कि आप अकेली औरत हो...उन्हे शक है कि कुछ.....कि कुछ.....”, इसके आगे बाई कुछ बोली नहीं और चली गई । और मैं चुपचाप खड़ी उसकी पीठ पर अपने अकेले होने के एहसास को ढूँढने लगी ....समझ नहीं पाई कि चुनौतियों को पार करके यहाँ तक पहुँचने के लिए खुद को शाबाशी दूँ, या नीचे वाली उस आंटी जी की “अकेले” शब्द की मानसिकता पर दुख मनाऊँ।
                                                                                                 - डॉ अनीता कपूर

Wednesday, 24 June 2015

उलझन

‘ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट’ एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी।
‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ एक भारतीय संस्था में एक भारतीय बच्चे को विदेश में अँग्रेजी पढ़ाई जा रही थी।
अपने देश में विदेशी ढंग से और विदेश में देसी ढंग से। अपने देश में, ‘ए फॉर अर्जुन, बी फॉर बलराम’ क्यों नहीं होता? मैं उलझन में पड़ गया।
मैं सोचने लगा अगर अँग्रेजी हमारी जरूरत ही है तो ‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ ही क्यों न पढ़ा जाए?   
– रोहित कुमार ‘हैप्पी’